Sunday, 4 December 2011

छोड़िये अदाएं अब


छोड़िये    अदाएं   अब   हमसे    रूठ  जाने  की |
कुछ  नहीं  बची  हिम्मत  आपको  मनाने  की ||

पड़    गयी   गले   में अब   दुश्मनी  ज़माने  की |
शान अब तो बन जाओ दिल  के आशियाने की ||

दिल तो है बग़ावत पर मेरे   ये    नहीं  बस  में |
लग गयी लगन इसको तुमसे प्यार  पाने की ||

आसमाँ  में  हैं  बादल  ,बर्क़  है  ,तलातुम   है |
और  आपको  सूझी  कश्तियाँ     चलाने  की ||

मैं हूँ नासमझ  मुझको  चाहे  जो  सज़ा दे  दो |
मैंने जो हिमाकत की तुमसे दिल लगाने की ||

आशियाँ   बचाने   की   मैं   उधेड़बुन   में  हूँ |
आज है ख़बर  पक्की आँधियों के  आने  की ||

जान,दिल,जिगर तो सब  आपके  हवाले है |
अब कुछ ज़रुरत है मुझको  आज़माने की || 

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

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