छोड़िये अदाएं अब हमसे रूठ जाने की |
कुछ नहीं बची हिम्मत आपको मनाने की ||
पड़ गयी गले में अब दुश्मनी ज़माने की |
शान अब तो बन जाओ दिल के आशियाने की ||
दिल तो है बग़ावत पर मेरे ये नहीं बस में |
लग गयी लगन इसको तुमसे प्यार पाने की ||
आसमाँ में हैं बादल ,बर्क़ है ,तलातुम है |
और आपको सूझी कश्तियाँ चलाने की ||
मैं हूँ नासमझ मुझको चाहे जो सज़ा दे दो |
मैंने जो हिमाकत की तुमसे दिल लगाने की ||
आशियाँ बचाने की मैं उधेड़बुन में हूँ |
आज है ख़बर पक्की आँधियों के आने की ||
जान,दिल,जिगर तो सब आपके हवाले है |
अब कुछ ज़रुरत है मुझको आज़माने की ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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