Sunday, 11 December 2011

उनमें बाक़ी हैं


उनमें  बाक़ी   हैं   शोखियाँ  अब  भी |
मुझ पे गिरती हैं बिजलियाँ अब भी ||

मेरे    कानों    को   गुदगुदा     जाएँ |
उनके   हाथों  की  चूड़ियाँ  अब  भी ||

रोज़   मिलते   हैं   बात   होती   है |
पर  दिलों  में  हैं दूरियाँ अब    भी ||

मांगते   हैं    जहेज़    में    इतना |
घर में बैठी  हैं  बेटियाँ  अब   भी ||

पेड़   नफ़रत   का   ये   पुराना  है |
दे  रहा  रोज़  तलख़ि्याँ अब  भी ||

सोचता   हूँ   कलाम   पु ख़्ता  हो |
रह ही जाती हैं ग़लतियाँ अब भी ||

प्यार   बेटी   का   भी   निराला  है |
मुझसे सुनती है लोरियाँ अब भी ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

  

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