उनमें बाक़ी हैं शोखियाँ अब भी |
मुझ पे गिरती हैं बिजलियाँ अब भी ||
मेरे कानों को गुदगुदा जाएँ |
उनके हाथों की चूड़ियाँ अब भी ||
रोज़ मिलते हैं बात होती है |
पर दिलों में हैं दूरियाँ अब भी ||
मांगते हैं जहेज़ में इतना |
घर में बैठी हैं बेटियाँ अब भी ||
पेड़ नफ़रत का ये पुराना है |
दे रहा रोज़ तलख़ि्याँ अब भी ||
सोचता हूँ कलाम पु ख़्ता हो |
रह ही जाती हैं ग़लतियाँ अब भी ||
प्यार बेटी का भी निराला है |
मुझसे सुनती है लोरियाँ अब भी ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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