ख्व़ाब में जब भी कभी आते हो तुम |
सच में मुझको गुदगुदा जाते हो तुम ||
साज़ बज उठते हैं लय में ख़ुद -ब -ख़ुद |
गीत कोई जब कभी गाते हो तुम ||
जब भी आँखों में नमी देखो मेरी |
तिरछी चितवन से क्यूँ मुस्काते हो तुम ||
झट से पीछे खींच लेते हो क़दम |
हाथ आगे जब मेरा पाते हो तुम ||
प्यार के मैं भेजता हूँ जो ख़ुतूत |
क्यूँ सहेली से ही पढ़वाते हो तुम ?
आपकी हर बात में तो ना ही ना |
और मुझसे हाँ ही करवाते हो तुम ||
वो शरारत से भरी बातें सभी |
मुझसे करके क्यूँ सितम ढाते हो तुम ?
तुम न खाते हो सुधरने की क़सम |
पर सताने की क़सम खाते हो तुम ||
मुझसे चाहत है अगर थोड़ी बहुत |
यूँ कभी मुंह पर नहीं लाते हो तुम ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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