Friday, 9 December 2011

ख्व़ाब में जब भी


ख्व़ाब  में  जब  भी  कभी आते हो तुम |
सच  में  मुझको  गुदगुदा जाते हो तुम ||

साज़ बज उठते हैं लय में  ख़ुद -ब -ख़ुद |
गीत   कोई   जब   कभी   गाते हो  तुम ||

जब   भी   आँखों   में   नमी   देखो  मेरी |
तिरछी चितवन से क्यूँ मुस्काते हो तुम || 

झट    से  पीछे   खींच   लेते  हो  क़दम |
हाथ   आगे    जब   मेरा  पाते हो  तुम || 

प्यार   के   मैं   भेजता  हूँ  जो  ख़ुतूत |
क्यूँ   सहेली  से  ही  पढ़वाते हो  तुम ?  

आपकी  हर  बात   में  तो  ना  ही  ना |
और  मुझसे  हाँ  ही  करवाते हो  तुम || 

वो    शरारत   से   भरी   बातें   सभी  |
मुझसे करके क्यूँ सितम ढाते हो तुम ? 

तुम   न  खाते   हो सुधरने की क़सम |
पर   सताने  की क़सम खाते हो तुम || 

मुझसे  चाहत  है  अगर  थोड़ी  बहुत |
यूँ   कभी  मुंह पर नहीं लाते हो तुम ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

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